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Monday 23 November, 2009

संघ और सामाजिक धारणा

एक बार की बात है, अन्धो के शहर में एक हाथी आया| वह बहुत भूखा था| अन्धो ने पहले कभी हाथी नहीं देखा था, तो उन्होंने बड़ी उत्सुकता से उस हाथी की आव-भगत की और उसको बड़ा सम्मान दिया| कुछ दिनों के बाद हाथी जब वहां से चला गया तो लोगो ने कयास लगाने चालू किये कि हाथी कैसा दिखता था? उनमे से एक ने बोला जिसने उसने उसकी सूंड पकड़ी थी,"हाथी तो अजगर जैसा होता है |" इतने में दूसरे ने बोला जिसने उसकी पूंछ पकड़ी थी कि," हाथी तो रस्सी की तरह होता  है |" अब एक बुजुर्ग ने बोला तुम लोगो को कुछ नहीं पता, चूँकि उसने उसका पेट पकड़ा था इसलिए उसने बोला," हाथी तो दीवाल कि तरह होता  है |" अंतत: एक व्यक्ति ने बोला तुम में से किसी को कुछ नहीं पता, "हाथी तो खम्बे कि तरह होता  है," उसने उसके पैर पकडे थे|

P.S.जब तक आदमी को ज्ञान नहीं होता, वह मात्र कयास लगता है, उनका कोई अर्थ नहीं होता|
अत: सभी समझदार व्यक्तियों से विनम्र आग्रह है कि मीडिया के भ्रमित करने वाले लेख अथवा समाचारों से दिग्भ्रमित न हो |

यह सन्देश उन सभी व्यक्तियों के लिए था जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अर्थ नहीं मालूम, मानसिकता नहीं मालूम, उसके गठन के पीछे निहित भावना एवं उद्देश्य नहीं मालूम. बावजूद इसके वे संघ पे कसीदे कसने का एक भी मौका नहीं छोड़ते|
||जय श्री राम||

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